Breaking News
निकाय चुनाव- पर्यवेक्षकों की टीम आज पार्टी नेतृत्व को सौंपेंगे नामों के पैनल
हमारी टीम घर-घर जाकर संजीवनी योजना और महिला सम्मान योजना के लिए करेगी पंजीकरण- अरविंद केजरीवाल
कॉकटेल के सीक्वल पर लगी मुहर, शाहिद कपूर के साथ कृति सेनन और रश्मिका मंदाना मचाएंगी धमाल
साल 2047 में भारत को विकसित बनाने में भारतीय कामगारों की रहेगी अहम भूमिका- प्रधानमंत्री मोदी 
चोटिल हुए भारतीय टीम के कप्तान, 26 दिसंबर से शुरु होने वाले चौथे सीरीज के मुकाबले पर छाया संकट 
ट्रिपल जश्न के लिए तैयार हुई पहाड़ों की रानी, यातायात व्यवस्था को लेकर पुलिस-प्रशासन ने तैयारियों को दिया अंतिम रुप 
सर्दियों में आइसक्रीम खाना सही है या नहीं? जानिए डाइटिशियन की राय
बाबा साहेब के अपमान पर कांग्रेस ने किया उपवास, भाजपा को कोसा
महाकुंभ में उत्तराखंड का होगा अपना पवेलियन, प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने की निःशुल्क भूमि आवंटित

पांचवीं अनुसूची एवं जनजाति दर्जा वापस पाने के लिए जंतर मंतर में जुटेंगे उत्तराखंडी

देहरादून। उत्तराखंड एकता मंच के बैनर तले जंतर मंतर पर 22 दिसंबर को ‘उत्तराखंड मूलनिवासी संसद’ का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें उत्तराखंड के अनेक बुद्धिजीवी, समाजसेवी, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, पूर्व नौकरशाह, पूर्व सैनिक , राज्य आंदोलनकारी, महिलाएं, युवा आदि सभी शामिल होकर उत्तराखड के पर्वतीय इलाके को पहले की भांति जनजातीय क्षेत्र घोषित कर सरकार से इसे संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करेंगे।

उत्तराखंड एकता मंच के देहरादून संयोजक अश्वनी मैंदोला का कहना है कि यह इलाका पहले जनजातीय क्षेत्र के तौर पर अधिसूचित था और यहां के मूल निवासियों को नादियों, जंगल, और जमीन संबंधी अधिकार प्राप्त थे जिन्हें सरकार ने 1972 में खत्म कर दिया था। इसका पर्वतीय जनजीवन पर बहुत विपरीत असर पड़ा। पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका के साधनों की नितांत कमी तथा अन्य कारकों से बहुत तीव्रगति से पलायन हो रहा है और हजारों गांव जनशून्य हो गए हैं।

अश्वनी मैंदोला ने आगे बताया पहाड़ में घटती जनसंख्या के कारण पिछली बार हुए विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन में पहाड़ों की विधानसभा सीटें कम हो गईं और अगले परिसीमन में यहां का प्रतिनिधित्व और भी घटने की आशंका है। इसका सीधा दुष्प्रभाव यहां के विकास तथा लोगों के जीवनस्तर पर पड़ रहा है। जबकि यह क्षेत्र दो-दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है। इस दुर्गम क्षेत्र का जनविहीन होते जाना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बहुत खतरनाक हो सकता है। इस महत्वपूर्ण विषय पर राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से ध्यान दिया जाना जरूरी है। यह सभी समस्याएं केवल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र को फिर से जनजातीय क्षेत्र घोषित कर इसे संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने से ही हल होंगी।

उत्तराखंड एकता मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और पूर्व सैनिक महावीर राणा ने बताया की यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से जनजाति बहुल रहा है। इसीलिए भारत सरकार द्वारा किसी भी समुदाय को जनजाति घोषित करने के जो मानक निर्धारित किए गए हैं, उनमें उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र खरा उतरता है क्योंकि यह मूलत: खस जनजातीय क्षेत्र था। इसके ऐतिहासिक तथा सरकारी प्रमाण मौजूद हैं।

संगठन का कहना है कि जनजाति का दर्जा वापस मिलने तथा संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने से पहाड़ी इलाकों से बहुत तेजी से हो रहे पलायन पर रोक लगेगी और पहाड़ में पहले जैसी खुशहाली लौटेगी। ‘उत्तराखंड मूलनिवासी संसद’ में इन्हीं मुद्दों पर उत्तराखंड के जनमानस द्वारा प्रस्ताव पास किया जाएगा l उसके बाद सरकार को एक ज्ञापन देकर यही मांग की जायेगी की वे उत्तराखंड विधानसभा में 5वीं अनुसूची का प्रस्ताव पास करके इसे केंद्र सरकार को भेजें ।

उत्तराखंड एकता मंच उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में संविधान की 5वीं अनुसूची/जनजाति दर्जा लागू करवाने की मांग का समर्थन उत्तराखंड के कई बुद्धिजीवियों ने किया है, जिनमें प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह रावत, पद्मश्री यशवंत सिंह कठोच, पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल गंभीर सिंह नेगी जी, डॉ. जीतराम भट्ट जी (पूर्व सचिव हिंदी एवं संस्कृत अकादमी ) और जौनसार से प्रसिद्ध इतिहासकार टीका राम शाह शामिल हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top